डूंगरपुर. होली का त्योहार देशभर में गुलाल और पक्के रंगों के साथ खेला जाता है. लेकिन आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में होली की अनूठी और खतरनाग परंपराएं आज भी निभाई जा रही है. इसी के तहत डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में सोमवार को धुलंडी के दिन पत्थरमार होली खेली गई. यहां लोगों ने एक दूसरे को रंग गुलाल की बजाय आपस में पत्थर बरसाएं. इसमें 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए. घायलों का नजदीकी अस्पताल में इलाज करवाया गया है. मान्यता है की पत्थरमार होली की चोट से बहने वाला खून जमीन पर गिरने से क्षेत्र में खुशहाली रहती है.
वागड़ में भीलूड़ा की पत्थरमार होली को देखने आसपास के गांवों के हजारों लोग एकजुट होते हैं. सोमवार को भी शाम ढलते ही भीलूड़ा समेत आसपास के गांवों के लोग ढोल कुंडी की थाप पर गैर नृत्य करते हुए निकले. लोग गांव के रघुनाथजी मंदिर के पास इकट्ठे हो गए. एक साथ कई ढोल की आवाज के साथ लोगों ने जमकर गैर खेली. मंदिर के पास मैदान में आकर युवा दो टोलियों में बंट गए और फिर शुरू हुई खूनी होली.
लोगों को हाथ, पैर और सिर पर चोटें आईं
दोनों पक्षों ने एक दूसरे के लोगों पर जमकर पत्थर बरसाए. पत्थरों के हमले में कई लोगों को हाथ, पैर और सिर पर चोटें आईं. पत्थरमार होली में कई लोग लहूलुहान हो गए. वहीं पत्थर बरसाने के दौरान कई लोग पेड़ों की ओट में छुपकर बचने का प्रयास करते रहे. पत्थरमार होली में 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए. उन्हें नजदीकी अस्पताल में ले जाकर इलाज करवाया गया.
पत्थरमार होली के पीछे यह है मान्यता
वहीं पत्थरमार होली को देखने कई गांवों के लोग दूर दूर तक बैठे रहे ताकि पत्थरों की मार उन तक नहीं पहुंचे. पत्थरमार होली की ये परंपरा 100 साल पहले से निभाई जा रही है. उसे गांव के लोग आज भी कायम रखे हुए हैं. मान्यता है कि पत्थर लगने से घायल व्यक्ति का खून जमीन पर गिरने से गांव पर किसी तरह का कोई संकट नहीं आता है. गांव में खुशहाली रहती है.
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FIRST PUBLISHED : March 26, 2024, 12:19 IST